नज़राना इश्क़ का (भाग : 48)
फरी अपने कमरे से तैयार होकर निकली, उसने नीले रंग का लांग सूट पहन रखा था, आँखों पर वही काला चश्मा, पैरों में सुनहले रंग की सामान्य सी सैंडल, बालों को उसने बहुत खूबसूरती से जूड़ा कर रखा था, आज उसने अपना हैंडबैग भी नहीं लिया हुआ था।
वह बाहर निकली और विक्रम को आवाज लगाते हुए नीचे आ गयी। विक्रम उसकी बातों का कोई जवाब नहीं दे रहा था, जिसका साफ मतलब था कि वह अब तक तैयार नहीं हो पाया था।
"भाई..! जल्दी से तैयार हो जाओ न..!" फरी उसके रूम का दरवाजा धकेलते हुए बोली, मगर दरवाजा अंदर की ओर से बंद था। "कछुआ भी अपने हाथ पांव आपसे तेज़ चलाता होगा भाई, आप विक नहीं वीक हैं, आलसी भाई हो आप! इसीलिए तो विशु भैया बहुत अच्छे भाई हैं..!" फरी अपनी नाराज़गी जताते हुए बोली।
"अरे आ रहा हूँ बाबा! थोड़ा ठीक से तैयार तो हो लेने दो!" विक्रम कंघी करता हुआ दरवाजा खोलकर बोला।
"हां तो जल्दी चलो न! कौन सा ससुराल जाना है?" फरी मुँह बनाते हुए बोली, यह देख विक्रम की हँसी छूट गयी। "जल्दी करो, वरना अगर ज्यादा धूप हो गयी तो माँ कमरे से बाहर तक भी नहीं निकलने देंगी, घर से बाहर निकलना तो दूर की बात है।" कहते हुए फरी पैर पटकते हुए वहां से चली गयी।
'जा तो मैं ससुराल ही रहा हूँ फर्रु..! और वो तेरा ससुराल ही है…!' मन ही मन बोलते हुए विक्रम फरी की ओर देखकर मुस्काया और फिर कार की चाभी लेकर हॉल में पहुँचा, जहां एक जगह पर अन्य सभी गाड़ियों की चाभियाँ रखी हुई थी।
"अच्छा भाई एक बात बताओ जब सारी चाभियाँ यहां रखी जाती हैं तो आप इस वाली चाभी को अपने पास क्यों रखते हैं!" फरी ने उसकी टांग खीचने के अंदाज़ में पूछा।
"अरे..! ये तो मेरा सीक्रेट है। मैं क्यों किसी को बताऊं?" विक्रम भारी आवाज बनाकर बोला। जिसपर फरी की हँसी निकल गई, उसके चेहरे पर अजीब सी स्माइल आ गयी।
"पर मुझे तो पता है ना..!" फरी हँसने के साथ बाहर निकलते हुए बोली।
"क्या..?" विक्रम हैरानी से उसकी ओर देखने लगा।
"क्योंकि ये कार..ज..जान्.. मेरा मतलब मुझे पसंद है।" फरी हँसते हुए बोली, एक पल को विक्रम के चेहरे पर अनजाना सा डर दिखाई दिया जो दूजे ही पल गायब हो गया, दोनों हँसते हुए कार के पास चले गए।
"वो दोनों तैयार तो होंगे न!" विक्रम कार स्टार्ट करता हुआ पूछा।
"मैंने कॉल करके कह दिया था।" कहते हुए उसने अपनी ओर का गेट बंद किया। दोनो हाहा हीही करते हुए वहां से निकले।
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"माशाल्लाह! आज तो मोहतरमा कहर ढा रही हैं।" जैसे ही फरी कार से उतरी जाह्नवी ने उसे देखते ही अपने हाथों को नजर न लगे की मुद्रा में सिर पर टिकाते हुए मुस्कुराकर बोली। यह सुनकर फरी शर्मा गयी, पर विक्रम को जोर की हँसी आयी।
"तुम भी कुछ कम नहीं लग रही हो…!" फरी ने शर्माते हुए मुँह पर हाथ रखकर कहा।
"रहने दो झूठी तारीफ ना करो, तुम्हारी बराबरी तो आज स्वर्ग की अप्सराएं भी नहीं कर सकती।" जाह्नवी ने जीभर के तारीफ करते हुए कहा। जिसे सुनकर विक्रम की हंसी निकल गयी।
इधर निमय चुपचाप चुपचाप सा खड़ा था, उसका दिल एक तरफ तो फरी को जी भर के देखना चाहता था वहीं दूसरी ओर उसके सामने जाने में भी उसकी हालत खराब हो रही थी। वह सोच रहा था, और सोचने में इतना अधिक घुस चुका था कि उसे कल्पना और हक़ीक़त में कोई फर्क ही नजर नहीं आ रहा था। फरी आज बेइन्तहा खूबसूरत नज़र आ रही थी, उसकी सिम्पलसिटी और नेचुरलटी उसे और खूबसूरत बनाती थी। वह नीले सूट में ऐसी लग रही थी मानो गहरे नीले सागर ने अपना सारा सौंदर्य उसे दे दिया हो या फिर ओस की बूंदों ने उसे बड़े प्यार से सजाया हो। वह बस खो सा गया था, उसे कुछ भी याद नहीं रहा।
"ओये…! किधर खो गए हो जनाब..!" विक्रम उसके कान के पास आवाज लगाते हुए बोला। यह सुनकर निमय कल्पना की दुनिया से वास्तविकता की धरातल पर उतरा।
"क.. क्या हुआ तुझे?" निमय, विक्रम पर बनावटी गुस्सा करते हुए बोला।
"होगा क्या? यही पास में ये दोनों एक दूसरे की तारीफ पे तारीफ किये जा रही हैं, एक तू है कि तुझे तेरा दोस्त नज़र ही नहीं आ रहा।" विक्रम ने मुँह लटकाकर शिकायती लहज़े में बोला।
"हाँ तो तारीफ करने के लिए कुछ होना भी चाहिए ना?" जाह्नवी और फरी ने एक ही स्वर में बोला।
"गजब बेइज्जती है यार! कोई इस गरीब की भी इज्जत कर लो!" अपनी शर्ट झाड़ता हुआ विक्रम बोला।
"और तारीफ चाहिए क्या?" निमय ने विक्रम की ओर देखकर उसे चिढ़ाया।
"तुम सबसे अपना हिसाब बराबर करके रहूंगा देख लेना..!" निमय ने वापिस कार में बैठते हुए कहा।
"अच्छा..! क्या करेगा?" निमय ने आश्चर्य जताते हुए पूछा। वह कोशिश करने में लगा हुआ था कि उसके अंदर दबी भावनाएं किसी भी हाल में बाहर न आने पाएँ।
"म..मैं… तुम तीनों की शादियों में नहीं आऊंगा…!" विक्रम ने गन्दा सा मुँह बनाया।
"ये तो बड़ी अच्छी बात है.. एक सांड का खाना बच जाएगा..!" जाह्नवी ने हँसते हुए कहा, ये सुनकर विक्रम का मुँह और बन गया।
"कुछ तो इज्ज़त कर लो यार मेरी... आज तो निमय भी मेरी साइड नहीं रहा।" विक्रम ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा।
"तो पहले कौन सा वो आपके साइड थे भाई…!" कहते हुए फरी हँसने लगी। निमय की निगाहें बस उसके हँसते हुए चेहरे पर जाकर टिक गई।
"जाने दो...!" विक्रम ने जैसे अपनी हार मानते हुए कहा। "कहाँ जाना है किसी ने कुछ सोचा है?"
"कृष्णा मंदिर…!" निमय ने सपाट स्वर में उत्तर दिया।
"वो तो यहां से दूर है ना..!" जाह्नवी ने अपनी शंका व्यक्त की।
"चलिए न! ज्यादा दूर थोड़े न हैं। मैंने सही कहा न भाई..!" फरी ने मुस्कुराते हुए कहा।
"हाँ यहां तो कई सारी मंदिर हैं। यहां से थोड़ी दूर सिटी पैलेस के पास ही एक कृष्णा मंदिर है।" विक्रम ने बताया। साथ ही अपने भौगोलिक ज्ञान को प्रदर्शित कर उसने गर्व से छाती फूला ली।
"ये तो मुझे भी पता था!"जाह्नवी उसकी मुस्कान देखकर सड़ा सा मुँह बना ली।
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थोड़ी देर में सभी मंदिर पहुँच गए, अपने जूते सैंडल बाहर ही उतारकर वे मंदिर प्रांगण में गए। कान्हा जी की पूजा अर्चना की और थोड़ी देर में वे सभी मंदिर से बाहर निकले।
वहां चारों तरफ बहुत शांति व्याप्त थी, निमय का मन अब पहले से बहुत अधिक शांत था, वह फरी से एक बार बात कर माफी मांग लेना चाहता था, मगर फिर भी उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी। वह तेजी से उन तीनों के आगे आगे बाहर की ओर बढ़ चला।
"निमय जी! सुनिए..! मुझे आपसे कुछ बात करनी है।" फरी ने उसके कंधे पर हाथ रख रोकते हुए कहा, उसके ऐसा करते ही निमय के अब तक के सारे यत्न विफल जान पड़ने लगे। वह बुरी तरह पसीने से नहा गया था, उसका शरीर ऐसे तप रहा था जैसे वो भीषण ज्वर से ग्रस्त हो।
"क.. क्या हुआ?" निमय ने खुद को संभालने की कोशिश करते हुए पूछा।
"भाई मैं अभी पांच मिनट में आती हूँ न!" फरी ने विक्रम से कहा और निमय को खींचते हुए वहां से दूर ले गयी।
"ये इन दोनों को क्या हुआ?" विक्रम ने जाह्नवी से इशारे में पूछा।
"वॉर चल रही है वॉर.. कोल्ड वॉर..!" जाह्नवी हँसकर धीरे से बोली, जिसपर विक्रम खिसिया गया। "देखे नहीं दोनो को, आपस में कोई बात तक नहीं कर रहे हैं। कल से मैंने इसके हाथ में मोबाइल नहीं देखा है, जो कि एक्सीडेंट का बाद से पूरे टाइम इसके हाथ में ही पड़ा रहता था।"
"मतलब मामला गंभीर है..!" विक्रम सोचने की मुद्रा में बोला।
"गौतम भी हो तो हम क्या कर सकते हैं..!" जाह्नवी ने कंधे उचकाए। "प्यार करना था और वॉर कर रहे हैं। कैसी ज़ालिम दुनिया बनाई तुमने कान्हा! अब तो भाभी दिलवा दो मुझे..!" वह मंदिर की ओर देखते हुए बोली।
"अब हम तो कुछ कर ना सकते न..! सब इन्ही के हवाले है।" विक्रम ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, जाह्नवी धीरे से मुस्काई।
दूसरी तरफ निमय की हालत बुरी तरह खराब थी, उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह फरी का सामना कैसे करेगा! जबकि फरी उसे धकेलते हुए वहां से थोड़ी दूर मंदिर के पास के मैदान में ले आयी थी, जहाँ बहुत ही कम लोग थे।
"क्या हुआ कुछ बोलोगी?" निमय ने डरते डरते उससे थोड़ा दूर जाकर पूछा।
"आपका मोबाइल कहा है?" फरी ने गुस्से से पूछा।
"घ..घर पर…. क..क्या हुआ?" निमय के चेहरे पर उसकी हड़बड़ाहट साफ साफ दिखाई दे रही थी। वह जिस चीज से डर रहा था फिलहाल उसी का सामना करने का वक़्त हो चला था।
"दो दिन तक फ़ोन कौन ऑफ रखता है?" फरी गुस्से से चिल्लाते हुए सी बोली, उसे पता था कि वो पब्लिक प्लेस में थी इसलिए उसने अपनी आवाज को दबा लेना ही ठीक समझी।
"मुझे आपसे ये उम्मीद नहीं था, आप...आप न बहुत गंदे हो..! मुझे तो आपसे बात तक ही नहीं करनी, बात ही क्यों कर रही हूँ, शक्ल तक भी नहीं देखना मुझे अब आपका..!" फरी गुस्से से बरसती चली गयी, एक देखकर निमय की रही सही उम्मीदें भी दम तोड़ दी।
"फरु प्लीज..! मेरी बात सुनो, मैं ऐसा नहीं करना चाहता था पर….!" निमय लगभग गिड़गिड़ाता हुआ बोला।
जब इंसान को लगता है कि वह अपनी सबसे प्यारी चीज खोने वाला है तो वह उसे अपनी पूरी ताकत से रोकना चाहता है। बस यही निमय की थी। वह पहले तो सोच रहा था कि दूर रहकर भी उससे प्यार करेगा पर अब वह उसे अपनी आंखों से दूर नहीं जाने दे सकता था।
"इतना कौन तड़पाता हैं हां? कौन रुलाता है इतना? मैंने सोचा मैंने सब पा लिया, मैंने तो कह दिया था कि मैं आपकी हूँ, आपको समझ नहीं आता क्या..? मैं कॉल पे कॉल, मैसेज पे मैसेज कर रही हूँ.. आपको समझ आता है कुछ…! अंदर से जल रही हूँ मैं, और आप हो कि मुँह फेरकर बैठे हो? क्या लगता है ऐसे इज़हार करोगे फिर मुँह फेर लोगे तो छोड़ दूंगी मैं..?" फरी का गुस्सा अब शिकायत में बदल चुका था, मगर उसके गुस्से को देखकर निमय बहुत हैरान हुआ, क्योंकि सबकुछ ठीक उसका उल्टा था जैसा उसने सोचा था, सारी उसकी गलती थी जो उसने अपना फोन स्विच ऑफ करके रख दिया।
"क.. क्या..? मतलब तुम भी मुझसे…!" निमय खुशी के मारे पागल हुआ जा रहा था।
"हां..!" कहते हुए फरी घुटने पर आ गयी, उसके हाथों में एक प्यारी सी सिल्वर रिंग थी। निमय को यह देख अपनी आंखों पर यकीन नहीं हो रहा था, वह मन ही मन कान्हा का शुक्रिया अदा कर रहा था।
"मुझे नहीं पता कि ये कैसे जाहिर करते हैं, आपने कैसे किया मुझे खुद नहीं पता! जानती हूँ आप इनकार नहीं करोगे फिर भी अजीब सा डर लग रहा है…! ये तय है कि मैं आपकी हूँ…! पर अब सिर्फ आपकी बन के रहना चाहती हूं।" फरी नजरें उठाकर निमय की ओर देखते हुए बोली। उसके होंठ कांप रहे थे, शरीर में मानो सनसनी दौड़ गयी थी। वह इतना कहकर थोड़ी देर चुप रह गईं।
निमय उसकी ओर एकटक देखते जा रहा था, मानों वह कह रहा हो कि 'जल्दी बोल पागल लड़की! मुझे भी सिर्फ तेरा बन के रहना है।'
"बोलो न…! ये सुनने को मेरे दिल की हर एक धड़कन तरसी है।" निमय से उसका इस वक़्त कहते कहते रुक जाना बर्दाश्त नहीं हो रहा था, एक एक पल उसे सैकड़ो साल की तरह लगने लगे थे।
"मैं आपसे…."
"धांय…!" इससे पहले फरी की बात पूरी होती, गोली के धमाके से वो इलाका दहल गया। फरी की जब सामने नजर पड़ी तो वह चीखते हुए पीछे जा गिरी, गोली निमय के सीने को चीरते हुए गुजर गई थी। वह जमीन पर गिरा हुआ निश्चेत पड़ा हुआ था। फरी के हाथों से रिंग छूट गयी, आँखों से आँसुओ का सैलाब उमड़ने लगा। वह जाकर जोर जोर से चिल्लाते उसे उठाने की कोशिश करने लगी मगर सब बेकार…! निमय की साँसे थमने लगी थी, आँखे पूरी तरह बंद हो चुकी थी।
"निम...निम...मेरी बात तो सुनो…! निमय जी…!" फरी उसका चेहरा अपनी गोद में लेकर पागलों की भांति जगाने की कोशिश करने लगी। मगर वह नहीं उठा, फरी बुरी तरह टूटने लगी थी, उसकी सारी खुशियां एक पल में टूटकर बिखर गयीं।
तभी वहां जाह्नवी और विक्रम भागे हुए आये, गोली चलने की आवाज उन दोनों ने भी सुनी थी। निमय को इस हालत में देखकर जाह्नवी की आँखे झरझर कर नीर बहाने लगी, वह बुरी तरह रोते हुए निमय की ओर दौड़ी, पर उसके पास पहुँचने से पहले ही वह कटे हुए पेड़ की गिरने लगी, विक्रम दौड़ते हुए जाह्नवी को संभाला और निमय की नब्ज जाँचने लगा। निमय की छाती उसके अपने खून से लाल हो चुकी थी, थोड़ी देर में विक्रम को एहसास हुआ कि जैसे निमय की नब्ज में कोई हलचल हुई हो। वह निमय को अपनी गोद में उठाकर तेजी से अपनी कार की ओर भागा, फरी और जाह्नवी भी एक दूसरे को संभालते हुए उसके पीछे-पीछे भागे। विक्रम जल्दी से उसे कार में लेटाकर हॉस्पिटल की ओर भागा। फरी और जाह्नवी वहीं स्तब्ध खड़ी रह गयी, जैसे ही उन्हें होश आया उन्होंने टैक्सी लिया और जाह्नवी विक्रम को कॉल कर यह पता करने की कोशिश करने लगी कि वह कौन से हॉस्पिटल जा रहा था। दोनो की हालत बहुत ज्यादा खराब थी, दोनो में से किसी की हिम्मत नहीं हो रही थी कि कोई घर पर ये बात बता सके। दोनों के आँखों से झरझर कर मोती बह रहे थे, फरी के हाथ और कपड़े में निमय का खून लगा हुआ था, जिसे देख उसके आँसू और नहीं रुक रहे थे। कहाँ अभी वह उससे अपने दिल की बात कहने वाली था, और अगले ही पल उसकी छाती गोली चीर गयी। वह मन ही मन कान्हा से अनेकों शिकायतें कर रही थी, नाराज हो रही थी, गुस्सा कर रही थी। निमय की यह हालत देखकर दोनो की दशा बहुत अधिक बिगड़ चुकी थी।
क्रमशः…..!!
sunanda
11-Feb-2023 06:15 PM
nice
Reply
shweta soni
30-Jul-2022 08:45 PM
Nice 👍
Reply
Arshi khan
03-Mar-2022 06:14 PM
👌👌👌
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मनोज कुमार "MJ"
06-Mar-2022 01:04 PM
Thanks
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